बुधवार, 3 नवंबर 2010

पीली छतरीवाली लड़की और इंतकाम

 उधर बीच मुझे याद आता है की, उदय प्रकाश की "पीली छतरी वाली लड़की" को लेकर काफी बहसों का दौर चला था...
जभी मुझे "नूर मोहम्मद राशिद" की ये  कविता याद आई थी, पर अफ़सोस उस वक्त बहुत खोजने पर भी मुझे नहीं मिली थी..पर अभी जा के  मिली...इन दोनों में समानता है..और उसी को देखने की कोशिश भी है...
फ़िलहाल "इंतकाम" नाम की ये कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहां हूँ...



उसका चेहरा, उसके खाद्दोखाल याद आते नहीं ,
इक शबिस्ता याद है,
इक बरहना जिस्म आतिशदा के पास,
फर्श पर कालीन, कालीनो पे सेज,
धात और पत्थर के बुत,
गोशा - ए - दिवार में हँसतें हुए,
और आतिशदा में अंगारों का शोर,
उन बुतों की बेहिसी पर खस्मगी
उजली - उजली ऊँची दीवारों पे अक्श,
उन फिरंगी हकीमों की यादगार 
जिनकी तलवारों ने रखा था यहाँ 
संगे  बुनयादे-फिरंग ! 
उसका चेहरा, उसके खाद्दोखाल याद आते नहीं,
इक बरहना जिस्म अब याद है, 
अजनबी औरत का जिस्म,
मेरे "होटों" ने लिया था रात भर,
जिससे अरबाबे-वतन की बेबसी का इंतकाम, 
वो बरहना जिस्म अब तक याद है !

मंगलवार, 2 नवंबर 2010




वो लाठियां टूटती हैं
 नीम - ख्वाबों में 
वो सूद जिसको चुकाना 
है मुश्किल 
दर्द के पैबंद मानिंद 
जड़ें हैं मेरे तन - बदन पे 
इन लाठियों के लाल धब्बे 
जो मालिए के बहाने गिरें हैं 
और तुम्हारे हाथो में
झरके गुलनार हो गयें हैं .... 

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

तुम्हारा प्रेम



मैं खोजता उन सब में
तुम्हारा प्रेम
जाने - अनजाने
तुम्हारी नक़ल , कोई प्रतिकृति मिले
तो पा लूँ.....
उसे -
जो हमने साथ - साथ महसूस किया था
एक लम्बी बारिश के गुजर जाने के बाद
शीशम के उस छोटे पेड़ के नीचे
पानी की नन्ही बूंदें
जिसकी पत्तियों पर टिकी थीं 
और एक हौले - से झटके के साथ
भीग गए थे हम
उस रात ....
वो पानी जो हमारी आँखों में आ बसा है
हरी नन्ही पत्तियौं चुभतीं हैं
मीठे ख्वाबों में
जिन्हें अब हम अलग - अलग देखतें हैं
मुझे यकींन है की
जैसे मैं खोजता हूँ
तुम भी खोजती होगी
वो ही नन्ही पत्तियां , पानी की बूदें ,
वो ही रात .....
जैसे मैं देखता हूँ -
तुम भी देखती होगी
उस रात के बाद हर कहीं
वो ही सांचा प्यार का
जैसे मैं महसूस करता हूँ
तुम भी करती होगी
वो ही पल जो हममे उपजा था साथ-साथ
की नहीं दे सके एक - दूसरे को
आजतक ........
अब भी मैं हाथ लगा के देखता हूँ
नाक के पास
कि इनमें वो ही गर्मी है या नहीं
तुम भी ऐसा करती होगी
बारिश में भीगकर
कि इनमें वो ही सिहरन है कि नहीं ......


२३/१२/२००४
देहरादून

शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

मुक्ति की सारी आकान्छाएं
आज क्यूँ मारे जाने की
देहलीज़ पर खड़ी हैं
क्या फिर कोई रंग लाल होगा ?

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

तुम्हारी याद में


FORGETTING YOU (water colour on paper - A4)





तुम्हारी याद में - 
तुमसे मैं क्या कहूँ ?
और किसी से भी मैं क्या कहूँ ?
तुम्हारी याद में - 
तुम बोलती हो सच बताऊँ - 
मैं कुछ भी नहीं सुनता 
तुम्हारी याद में - 
की मेरे अन्दर जो रोज़ 
जन्म लेता और मरता है 
उसका तवारुफ़
तुम्हारे अन्दर जो रोज़ 
जीता और मरता है 
उससे कितना कम या ज्यादा है ?
तुम्हारी याद में - 
वो ट्रेन जो मेरे दिल की पटरियों पर 
धर्धरातेय हुए चलती है 
इक दिन में कितना डीज़ल पीती है ?
तुम्हारी याद में - 
मैं कल फिर बिरला मंदिर की सीडियां 
गिनता हुआ चढ़ गया 
तुम्हारी याद में - 
आ के बालकनी में - शाम को 
एक सिगरेट सुलगाई 
तो सिर के ऊपर लटकते बल्ब की सारी बिजली 
हवा में तैरने लगी 
तुम्हारी याद में - 
सपने में अर्ध्नारिस्वर आये 
और मुझसे अपने को पूरा करने का 
वर मागने लगे !!
तुम्हारी याद में - 
मैंने उलटे जूते पहने 
और निकल पड़ा 
जिन्दगी का सफ़र तय करने के वास्ते !
तुम्हारी याद में - 
वही जिन्न इक बार फिर बोतल से बाहर आया 
और कहने लगा - 
"बोलो तो एक दुकान खुलवा दूँ - यादों की"
तुम्हारी याद में - 
इतिहास दफन हो गया 
मेरे मोबाइल के इन्बोक्स  में 
की - 
"तुम्हरी याद आती है -- बहोत " !!!

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

REMEMBERING YOUR CURVES i.e. caterpillar

acrylic and water colour on glossy paper              size: A3

बुधिया , दर्शील और बुग्गी-वूग्गी

मुझे ठीक से याद नहीं आता की, बुधिया कब, कितने किलोमीटर लगातार दौड़ कर विश्व रिकोर्ड बनता है? कब मानवाधिकार वाले ५ वर्ष के बुधिया के ट्रेनर के ऊपर अवयस्क को दौड़ाने के जुर्म में मुकदमा कर देतें हैं? मुझे ये भी ठीक से नहीं याद आता की, कब "सूरज" जैसे २-३ वर्ष के और कितने बच्चे , कहाँ-कहाँ राजनैयतिक उथल-पुथल के शिकार हो कर ठीक उसे बोरवेल में जाँ गिरतें है की पूरा मीडिया जगत और सब काम छोड़कर आर्मी के जनरल सैनिकों सहित उसे निकलने जाँ पहुंचते हैं! ऐसे पहले हादसे के बाद मैंने बीसों ऐसे ही हादसे पेपर में बीच के पेजों में पढें होंगें ! पर ये हादसे पूरी तरह से राजनैतिक न होकर , आर्थिक कारणों पर निर्भर थे ! (आपको याद दिलाने के लिए मैं बता दूँ की, सूरज रातों-रात मालामाल हो गया था! ) मुझे ये भी याद नहीं आता की किस १५ अगस्त को लाल किले पर स्कूल के छोटे-छोटे बच्चे गर्मी से बेहोश हो कर गिर पड़े थे ! कम-से-कम भारत के प्रधानमंत्री को तो इस पर शर्मिंदा होना चाहिए था , पर ये परम्परा बदस्तूर जारी है !
तो दर्शील- एक फ़िल्मी बच्चा है ! जैसे बहुत से लोग मानतें है की जिन्दगी - इक जुआं है... खेल है...सफ़र,रास्ता है...सिधांत है... इतिहास है... वैसे ये फ़िल्मी भी है ! दर्शील , शाहरुख खान की तरह से परदे पर हमेशा खुश रहता है ! दर्शील की तरह बहुत सारे फ़िल्मी बच्चे और भी हैं जिनको सब लोग नहीं जानते !
गोरेगांव स्टेशन पर फिल्म शूट में ८ से १२ साल के १८-२० बच्चे थे ! जो शूट पर बुलाये गए थे ! वो सब शाहिद कपूर से मिलना चाहते थे ! पर इक चाभी वाले खिलौने की तरह हर इक "टेक" पर उन्हे ट्रेन में चढ़ाया जाता फिर उतारा जाता ! सुबहो ७ से लेकर शाम ७ बजे तक बच्चे सिर्फ ट्रेन में चढ़ते - उतरते रहे ! दोपहर लंच में मैं उनकी बोगी में गया ! सारे बच्चे थक कर काठ की बेंचों पर इधर -उधर सो रहे थे ! ये कहा जाँ सकता है की , किसी स्त्त्रग्लर की तरह वो कोई हीरो या दर्शील नहीं बनना चाहते थे , बल्कि भाड़े पर बुलाये गए थे ! ऐसे ही जैसे हम आर्ट डिपार्टमेंट के लोगों ने प्लेटफॉर्म पर लगाने के लिए कुछ दुकाने कुछ हाथ गाड़ियाँ मगवायें थीं ! भाड़े के लोग , भाड़े की दुकाने , भाड़े की जिन्दगी ! अब क्यूँ नहीं कोई मनावाधिकर्वाले इन सब बातों को देखते ? क्यूँ नहीं उन लोगों के खिलाफ याचिकाएं दायर की जाती हैं , जिनके बच्चे बूगी - वूगी में लगातार डांस करकर के लोगों की वाहवाही और पैसे बना रहें हैं ? क्यूँ नहीं उन विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है , जिन में की बच्चा इक चमच चोकोलेट पीकर दिन भर दौड़ लगाता है ! और उनके माँ - बाप वही चोकोलेट ला कर पडोसी से कहते है की अब हमारा बच्चा भी "सुपर - स्ट्रोंग " बनेगा ! फिलहाल , समय की गति अजीब है और आजकल के बच्चों का वातावरण बदल रहा है तो जाहिर है की उनकी सोच के मायेने और उनके "एम्बलेम" भी बदल रहें हैं ; पर किस हद तक ये बात ध्यान देने लायक है !

कठफोड़वा: सिद्दांत-विमर्श

कठफोड़वा: सिद्दांत-विमर्श