बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

तुम्हारा प्रेम



मैं खोजता उन सब में
तुम्हारा प्रेम
जाने - अनजाने
तुम्हारी नक़ल , कोई प्रतिकृति मिले
तो पा लूँ.....
उसे -
जो हमने साथ - साथ महसूस किया था
एक लम्बी बारिश के गुजर जाने के बाद
शीशम के उस छोटे पेड़ के नीचे
पानी की नन्ही बूंदें
जिसकी पत्तियों पर टिकी थीं 
और एक हौले - से झटके के साथ
भीग गए थे हम
उस रात ....
वो पानी जो हमारी आँखों में आ बसा है
हरी नन्ही पत्तियौं चुभतीं हैं
मीठे ख्वाबों में
जिन्हें अब हम अलग - अलग देखतें हैं
मुझे यकींन है की
जैसे मैं खोजता हूँ
तुम भी खोजती होगी
वो ही नन्ही पत्तियां , पानी की बूदें ,
वो ही रात .....
जैसे मैं देखता हूँ -
तुम भी देखती होगी
उस रात के बाद हर कहीं
वो ही सांचा प्यार का
जैसे मैं महसूस करता हूँ
तुम भी करती होगी
वो ही पल जो हममे उपजा था साथ-साथ
की नहीं दे सके एक - दूसरे को
आजतक ........
अब भी मैं हाथ लगा के देखता हूँ
नाक के पास
कि इनमें वो ही गर्मी है या नहीं
तुम भी ऐसा करती होगी
बारिश में भीगकर
कि इनमें वो ही सिहरन है कि नहीं ......


२३/१२/२००४
देहरादून

3 टिप्‍पणियां:

  1. हरी नन्ही पत्तियौं चुभतीं हैं
    मीठे ख्वाबों में
    जिन्हें अब हम अलग - अलग देखतें हैं

    सुन्‍दर शब्‍द, भावमय प्रस्‍तुति ।

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  2. सुन्दरता से भावो को प्रस्तुत किया है।

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