शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

मुक्ति की सारी आकान्छाएं
आज क्यूँ मारे जाने की
देहलीज़ पर खड़ी हैं
क्या फिर कोई रंग लाल होगा ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें