शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

तुम्हारी याद में


FORGETTING YOU (water colour on paper - A4)





तुम्हारी याद में - 
तुमसे मैं क्या कहूँ ?
और किसी से भी मैं क्या कहूँ ?
तुम्हारी याद में - 
तुम बोलती हो सच बताऊँ - 
मैं कुछ भी नहीं सुनता 
तुम्हारी याद में - 
की मेरे अन्दर जो रोज़ 
जन्म लेता और मरता है 
उसका तवारुफ़
तुम्हारे अन्दर जो रोज़ 
जीता और मरता है 
उससे कितना कम या ज्यादा है ?
तुम्हारी याद में - 
वो ट्रेन जो मेरे दिल की पटरियों पर 
धर्धरातेय हुए चलती है 
इक दिन में कितना डीज़ल पीती है ?
तुम्हारी याद में - 
मैं कल फिर बिरला मंदिर की सीडियां 
गिनता हुआ चढ़ गया 
तुम्हारी याद में - 
आ के बालकनी में - शाम को 
एक सिगरेट सुलगाई 
तो सिर के ऊपर लटकते बल्ब की सारी बिजली 
हवा में तैरने लगी 
तुम्हारी याद में - 
सपने में अर्ध्नारिस्वर आये 
और मुझसे अपने को पूरा करने का 
वर मागने लगे !!
तुम्हारी याद में - 
मैंने उलटे जूते पहने 
और निकल पड़ा 
जिन्दगी का सफ़र तय करने के वास्ते !
तुम्हारी याद में - 
वही जिन्न इक बार फिर बोतल से बाहर आया 
और कहने लगा - 
"बोलो तो एक दुकान खुलवा दूँ - यादों की"
तुम्हारी याद में - 
इतिहास दफन हो गया 
मेरे मोबाइल के इन्बोक्स  में 
की - 
"तुम्हरी याद आती है -- बहोत " !!!

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पोष्ट पढकर प्र्सन्नता हुई। जारी रखियेगा। आभार!

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  2. तुम्हारी याद में -
    की मेरे जो रोज़
    जन्म लेता और मरता है
    उसका तवारुफ़
    तुम्हारे अन्दर जो रोज़
    जीता और मरता है
    waah bahut khub.

    जवाब देंहटाएं
  3. इतिहास के दुहराव और सभ्यता की टकराहट के बीच किसी की याद को जिंदा रखना वाकई बहुत मुस्किल है लेकिन आपकी यह कविता पढ़कर सब कुछ एक सिरे से फिर अपने आपको दूहरा गया.
    कई दिनों के बाद एक बहुत बढ़िया कविता पढने को मिली.
    बधाई !!!

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