मंगलवार, 9 अगस्त 2011

....मैं.....


...मैं अलमस्त फ़कीर-सा ...
बाटता फिरता हूँ तुमको...
की भर आये इक नदी 
इस मानसून में..
की पथरा कर फट जाये 
सुखी जमीं...
हमारे दिल और आँखों की तरह 
इन्ही से फूटें फौवारे 
आतिशबाजियो के ...
इक बंदर गुलाटी मार जाये
जो तुम्हारी आँखों से होता हुआ 
तुम्हारी अंतड़रिओं में जा के खींच जाये...
अब मेरी आँखों से आसूँ नहीं 
मदार के ढूध बहतें हैं 
इसका एक भुआ चटक के
उड़ता हुआ बनस्पति विज्ञानं की 
छात्रा के किताब में
जा के धस  गया है 
और बन गया है....ताड़ी का एक पेड़ ....
जिसमें अनगिनत लबनिया 
धीरे-धीरे करके भर रहीं हैं...
...मैं... बूँद-बूँद करके ही मर रहा हूँ.... 

बस्ती ..... तू क्यूँ बसती है....


बस्ती तो बसती है ...
निर्जन बियाबान बहुत जीतें हैं ...
गीतों के मरने का दर्द बहुत पीतें हैं
प्राण बहुत जीतें हैं...
प्राण बहुत जीतें हैं...

बुधवार, 3 नवंबर 2010

पीली छतरीवाली लड़की और इंतकाम

 उधर बीच मुझे याद आता है की, उदय प्रकाश की "पीली छतरी वाली लड़की" को लेकर काफी बहसों का दौर चला था...
जभी मुझे "नूर मोहम्मद राशिद" की ये  कविता याद आई थी, पर अफ़सोस उस वक्त बहुत खोजने पर भी मुझे नहीं मिली थी..पर अभी जा के  मिली...इन दोनों में समानता है..और उसी को देखने की कोशिश भी है...
फ़िलहाल "इंतकाम" नाम की ये कविता यहाँ प्रस्तुत कर रहां हूँ...



उसका चेहरा, उसके खाद्दोखाल याद आते नहीं ,
इक शबिस्ता याद है,
इक बरहना जिस्म आतिशदा के पास,
फर्श पर कालीन, कालीनो पे सेज,
धात और पत्थर के बुत,
गोशा - ए - दिवार में हँसतें हुए,
और आतिशदा में अंगारों का शोर,
उन बुतों की बेहिसी पर खस्मगी
उजली - उजली ऊँची दीवारों पे अक्श,
उन फिरंगी हकीमों की यादगार 
जिनकी तलवारों ने रखा था यहाँ 
संगे  बुनयादे-फिरंग ! 
उसका चेहरा, उसके खाद्दोखाल याद आते नहीं,
इक बरहना जिस्म अब याद है, 
अजनबी औरत का जिस्म,
मेरे "होटों" ने लिया था रात भर,
जिससे अरबाबे-वतन की बेबसी का इंतकाम, 
वो बरहना जिस्म अब तक याद है !

मंगलवार, 2 नवंबर 2010




वो लाठियां टूटती हैं
 नीम - ख्वाबों में 
वो सूद जिसको चुकाना 
है मुश्किल 
दर्द के पैबंद मानिंद 
जड़ें हैं मेरे तन - बदन पे 
इन लाठियों के लाल धब्बे 
जो मालिए के बहाने गिरें हैं 
और तुम्हारे हाथो में
झरके गुलनार हो गयें हैं .... 

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

तुम्हारा प्रेम



मैं खोजता उन सब में
तुम्हारा प्रेम
जाने - अनजाने
तुम्हारी नक़ल , कोई प्रतिकृति मिले
तो पा लूँ.....
उसे -
जो हमने साथ - साथ महसूस किया था
एक लम्बी बारिश के गुजर जाने के बाद
शीशम के उस छोटे पेड़ के नीचे
पानी की नन्ही बूंदें
जिसकी पत्तियों पर टिकी थीं 
और एक हौले - से झटके के साथ
भीग गए थे हम
उस रात ....
वो पानी जो हमारी आँखों में आ बसा है
हरी नन्ही पत्तियौं चुभतीं हैं
मीठे ख्वाबों में
जिन्हें अब हम अलग - अलग देखतें हैं
मुझे यकींन है की
जैसे मैं खोजता हूँ
तुम भी खोजती होगी
वो ही नन्ही पत्तियां , पानी की बूदें ,
वो ही रात .....
जैसे मैं देखता हूँ -
तुम भी देखती होगी
उस रात के बाद हर कहीं
वो ही सांचा प्यार का
जैसे मैं महसूस करता हूँ
तुम भी करती होगी
वो ही पल जो हममे उपजा था साथ-साथ
की नहीं दे सके एक - दूसरे को
आजतक ........
अब भी मैं हाथ लगा के देखता हूँ
नाक के पास
कि इनमें वो ही गर्मी है या नहीं
तुम भी ऐसा करती होगी
बारिश में भीगकर
कि इनमें वो ही सिहरन है कि नहीं ......


२३/१२/२००४
देहरादून

शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

मुक्ति की सारी आकान्छाएं
आज क्यूँ मारे जाने की
देहलीज़ पर खड़ी हैं
क्या फिर कोई रंग लाल होगा ?

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

तुम्हारी याद में


FORGETTING YOU (water colour on paper - A4)





तुम्हारी याद में - 
तुमसे मैं क्या कहूँ ?
और किसी से भी मैं क्या कहूँ ?
तुम्हारी याद में - 
तुम बोलती हो सच बताऊँ - 
मैं कुछ भी नहीं सुनता 
तुम्हारी याद में - 
की मेरे अन्दर जो रोज़ 
जन्म लेता और मरता है 
उसका तवारुफ़
तुम्हारे अन्दर जो रोज़ 
जीता और मरता है 
उससे कितना कम या ज्यादा है ?
तुम्हारी याद में - 
वो ट्रेन जो मेरे दिल की पटरियों पर 
धर्धरातेय हुए चलती है 
इक दिन में कितना डीज़ल पीती है ?
तुम्हारी याद में - 
मैं कल फिर बिरला मंदिर की सीडियां 
गिनता हुआ चढ़ गया 
तुम्हारी याद में - 
आ के बालकनी में - शाम को 
एक सिगरेट सुलगाई 
तो सिर के ऊपर लटकते बल्ब की सारी बिजली 
हवा में तैरने लगी 
तुम्हारी याद में - 
सपने में अर्ध्नारिस्वर आये 
और मुझसे अपने को पूरा करने का 
वर मागने लगे !!
तुम्हारी याद में - 
मैंने उलटे जूते पहने 
और निकल पड़ा 
जिन्दगी का सफ़र तय करने के वास्ते !
तुम्हारी याद में - 
वही जिन्न इक बार फिर बोतल से बाहर आया 
और कहने लगा - 
"बोलो तो एक दुकान खुलवा दूँ - यादों की"
तुम्हारी याद में - 
इतिहास दफन हो गया 
मेरे मोबाइल के इन्बोक्स  में 
की - 
"तुम्हरी याद आती है -- बहोत " !!!